हरिवंश राय बच्चन
" लहरों से डर कर नौका पार नहींं होती
हिम्मत करने वालों की कभी हार नहीं होती "
हरिवंश राय बच्चन एक ऐसा नाम जिसको सुनते ही मधुशाला की याद आ ही जाती है। हिंदी भाषा में इतना बड़ा कवि और लेखक शायद ही कोई हुआ हो। बच्चन साहब का जन्म इलाहाबाद के पास प्रतापगढ़ जिले के छोटे से गाँव बाबूपट्टी के एक कायस्थ परिवार में हुआ। बचपन से ही उन्हें पढने लिखने का बहुत शौक था।
बच्चन साहब ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा उर्दू और हिंदी भाषाओ में प्राप्त की , फिर उन्होंने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से अंग्रेजी भाषा में मास्टर किया। इसके बाद उन्होंने अंग्रेजी भाषा में ही डॉक्टर्स भी किया।
बच्चन साहब ने ऐसी ऐसी रचनाये लिखी है जिसको पढने के बाद जीवन से निराश व्यक्ति के अन्दर भी जीने की चाह आ जाती है। आज भी युवा जब भी अपने जीवन से हताश निराश रहते है , जब भी उन्हें जीवन में सिर्फ अन्धकार दिखाई देना है तब बच्चन साहब की कोई न कोई रचना उस हारे हुए बच्चे के काम ज़रूर आती है।
बच्चन साहब को उनकी रचनाओ के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित भी किया गया है। उनकी कृति दो चट्टानें को १९६८ में हिन्दी कविता के साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। इसी वर्ष उन्हें सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार तथा एफ्रो एशियाई सम्मेलन के कमल पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। बिड़ला फाउण्डेशन ने उनकी आत्मकथा के लिए उन्हें सरस्वती सम्मान दिया था। बच्चन को भारत सरकार द्वारा १९७६ में साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था।
ये बच्चन साहब का ही जादू है जो आज उनके पुत्र अमिताभ बच्चन में दिखता है। उनकी दी हुई शिक्षा को आगे बढ़ाते हुए आज अमिताभ जी सदी के महानायक कहलाते है।
तो चलिए बच्चन साहब की कुछ रचनाओ से प्रेरित होके हम भी अपना जीवन सुधार ले -
१)
मदिरालय जाने को घर से
चलता है पीने वाला
किस पथ से जाऊ ?
असमंजस में है वो भोला भाला
अलग अलग पथ बतलाते सब
पर मै यह बतलाता हूं
राह पकड़ तू एक चलाचल
पा जायेगा मधुशाला।
धर्मग्रन्थ सब जला चुकी है,
जिसके अंतर की ज्वाला,
मंदिर, मसजिद, गिरिजे,
मंदिर, मसजिद, गिरिजे,
सब को तोड़ चुका जो मतवाला,
पंडित, मोमिन, पादिरयों के
पंडित, मोमिन, पादिरयों के
फंदों को जो काट चुका,
कर सकती है आज
कर सकती है आज
उसी का स्वागत मेरी मधुशाला।
बने पुजारी प्रेमी साकी,
गंगाजल पावन हाला,
रहे फेरता अविरत गति से
रहे फेरता अविरत गति से
मधु के प्यालों की माला
और लिये जा, और पीये जा,
और लिये जा, और पीये जा,
इसी मंत्र का जाप करे’
मैं शिव की प्रतिमा बन बैठूं,
मैं शिव की प्रतिमा बन बैठूं,
मंदिर हो यह मधुशाला।
हरा भरा रहता मदिरालय,
जग पर पड़ जाए पाला,
वहाँ मुहर्रम का तम छाए,
वहाँ मुहर्रम का तम छाए,
यहाँ होलिका की ज्वाला,
स्वर्ग लोक से सीधी उतरी
स्वर्ग लोक से सीधी उतरी
वसुधा पर, दुख क्या जाने,
पढ़े मर्सिया दुनिया सारी,
पढ़े मर्सिया दुनिया सारी,
ईद मनाती मधुशाला।
२)
लहरों से डर कर नौका पार नहींं होती
हिम्मत करने वालों की कभी हार नहीं होती
हिम्मत करने वालों की कभी हार नहीं होती
नन्ही चींटीं जब दाना ले कर चढ़ती है
चढ़ती दीवारों पर सौ बार फिसलती है
मन का विश्वास रगॊं मे साहस भरता है
चढ़ कर गिरना, गिर कर चढ़ना न अखरता है
मेहनत उसकी बेकार हर बार नहीं होती
चढ़ती दीवारों पर सौ बार फिसलती है
मन का विश्वास रगॊं मे साहस भरता है
चढ़ कर गिरना, गिर कर चढ़ना न अखरता है
मेहनत उसकी बेकार हर बार नहीं होती
हिम्मत करने वालों की कभी हार नहीं होती
डुबकियाँ सिंधु में गोताखोर लगाता है
जा-जा कर खाली हाथ लौट कर आता है
मिलते न सहज ही मोती गेहरे पानी में
बढ़ता दूना विश्वास इसी हैरानी में
मुट्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती
हिम्मत करने वालों की कभी हार नहीं होती
असफलता एक चुनौती है, स्वीकार करो
क्या कमी रह गयी देखो और सुधार करो
जब तक न सफल हो नींद-चैन को त्यागो तुम
संघर्षों का मैदान छोड़ मत भागो तुम
कुछ किए बिना ही जयजयकार नहींं होती
हिम्मत करने वालों की कभी हार नहीं होती
३)
लो दिन बीता, लो रात गई,
सूरज ढलकर पच्छिम पहुँचा,
डूबा, संध्या आई, छाई,
सौ संध्या-सी वह संध्या थी,
क्यों उठते-उठते सोचा था,
दिन में होगी कुछ बात नई।
लो दिन बीता, लो रात गई।
सूरज ढलकर पच्छिम पहुँचा,
डूबा, संध्या आई, छाई,
सौ संध्या-सी वह संध्या थी,
क्यों उठते-उठते सोचा था,
दिन में होगी कुछ बात नई।
लो दिन बीता, लो रात गई।
धीमे-धीमे तारे निकले,
धीरे-धीरे नभ में फैले,
सौ रजनी-सी वह रजनी थी
क्यों संध्या को यह सोचा था,
निशि में होगी कुछ बात नई।
लो दिन बीता, लो रात गई।
चिड़ियाँ चहकीं, कलियाँ महकी,
पूरब से फिर सूरज निकला,
जैसे होती थी सुबह हुई,
क्यों सोते-सोते सोचा था,
होगी प्रातः कुछ बात नई।
लो दिन बीता, लो रात गई।
धन्यवाद
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